सोना मोहपात्रा, मैं ये माफ़ीनामा आपके और आपके जैसे उन सभी लोगों के नाम लिख रहा हूँ, जो सिर्फ सच को सच बोलने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन गुंडेबाज़ी का शिकार हो रहे हैं. उन सभी लोगों के नाम जिन्हें या तो सरेआम या इनबॉक्स कर के गालियाँ दी जाती है, डराया जाता है या धमकाया जाता है.
जब इस देश में सरहदों के साथ-साथ, देश के अन्दर भी हमारी जान बचाने के लिए सैनिक अपनी जान दिए जा रहे हैं, गाँव में महिलाओं का निर्दयता से बलात्कार कर दिया जा रहा है, बुंदेलखंड में किसान भूखे हैं, विदर्भ में आत्महत्याएं हो रही है, हमारा खून नही खौल रहा है. खून खौल रहा है तो आप पर की आपने हमारे देवता समान भाई को गलत कैसे ठहरा दिया. आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया की सलमान खान, जो फ़रिश्ते के बन्दे हैं, उनको उनके फैन्स के सामने आप दोषी ठहरा सकती हैं. और तो और, ऊपर से एक औरत हो कर, जिस औरत को हमने आज भी पाँव तले दबा के रखा है, जिसे कभी दहेज़ के नाम पर खुलेआम जला देते हैं, तो कभी स्लट का तमगा देकर अपने मर्द होने का सबूत देते हैं, उसने बोलने की हिम्मत की भी तो कैसे.
हम आपसे माफ़ी इसलिए माँग रहे हैं की हमें लगता है की अब शर्म हममे बची ही नही है. हम जानवर से इंसान बने थे, लेकिन इंसान से अब हैवान बनते जा रहे हैं, या लगभग बन चुके हैं. कई मामलों में काने तो हम पहले से थे, लेकिन अब धीरे-धीरे अँधे, बहरे और गूँगे बनते जा रहे हैं. अँधे इसलिए की कुछ सच्चाई हमें दिखाई नही देती, और कुछ हम देखना नही चाहते, बहरे इसलिए क्यूँकी अपने मतलब की बात छोड़ हमें और कुछ सुनाई नही देता और गूँगे इसलिए क्यूँकी जहाँ बोलना है वहां हम बोल नही पाते, भले कभी आप जैसे लोगों को जी भर कर माँ-बहन की गालियाँ दे ले. दरअसल हम बिलकुल ढोंगी हो चुके हैं. जहाँ दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के आगे सर झुकाते हैं, वहीँ सोना, सोनम या पूजा के इज्जत की धज्जियाँ सडकों, गलियों के साथ-साथ फेसबुक, ट्विटर पर उड़ा कर अपनी मर्दानगी दिखाते हैं. हम हिन्दू भी हैं, और मुसलमान भी है, बस इन्सान अब नही हैं. कहीं हमारा खून तो पानी नही हो गया है? लेकिन अगर खून पानी हो जाता तो किसी भी बात पर नही खौलता. मुझे तो कभी-कभी लगता है की इस खून में शायद जहर भर गया है, क्यूँकी हम जब भी बोलते हैं, जहर ही उगलते हैं.
हमें लगता है की अब हम कायर हो चुके हैं. मोबाइल के टच स्क्रीन और कंप्यूटर के कीबोर्ड के पीछे छुपकर दिन भर लोगों को गालियाँ देते फिरना भला कहाँ की बहादुरी है, लेकिन चूँकि हम बेशर्म, बेहया है, ये बात हम मान नही सकते. आपने जो कहा, सही कहा और इस बात पर मुझे फ़क्र है की आप आज भी उसी हिम्मत से अकेले लड़ रही है, जिस हिम्मत से पहले दिन लड़ा था. बस एक गुजारिश है की आप झुकना मत. क्यूँकी अगर आप जैसे लोग भी झुक गए, तो हम जैसे कायरों, बुजदिलों का हौसला और बढ़ जायेगा, जो शायद समाज में और जहर घोलेगा. आप हिम्मत मत हारना, क्यूँकी हो सकता है की आपकी हिम्मत देख कर हम जैसों में थोड़ी शर्म वापस आ जाये, फिर से शायद हम जैसे अँधे देखने लायक हो जाये, बहरे सुनने लायक और गूँगे बोलने लायक हो जाएँ. हमें माफ़ कर देना सोना, क्यूँकी हम बेवकूफ तो पहले से ही थे, अब बेशरम भी होते जा रहे हैं.
Aapki soch aur likhne ke tareeke ko mera salaam!
Mera blog bhi aap zaruri dekhein aur apne sujhaav dene ki kripa kre.
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Jee shukriya, dekha hai maine aapka blog, kaafi sanjidgi se aur pure detail me likhte hai…bahut badhiya!
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Aapka bahot bahot dhanyawaad
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